आज भी देश के ८० प्रतिशत लोग खेती पर निर्भर करते है. खेती मे ज्यादा मेहनत ओर मनचाही फसल की उम्मीद न होणे के वजह से नौजवानो का झुकाव इस तरफ ज्यादा नही है. शहरीकरण के बढते प्रभाव से शहर से लगकर जितनी भी जमीन है वो जमीन शहरीकरण के नाम पर बिक गई है ओर जो बची है वह बिकने के कगार पे है. इस देश मे चार प्रकार के लोग होते है जो विभिन्न प्रकार से tax की चोरी करते है.
०१. किसान
०२. सुनार या ज्वेलर
०३. जमीन डेवलपर
०४. कारखानदार
०५. हवाला एजंट
इन मे से सबसे पहले तो किसान अपनी जमीन किसी प्लॉट डेवलपर को बेच देते है. वो डेवलपर किसान को नगद रुपये देकर जमीन का भाव ज्यादा देकर जमीन खरीद लेता है ओर सभी पैसे कॅश मे दे देता है. किसान भी अपने जमीन के पैसे कॅश मे ले लेता है उसे जमीन बिकणे पर एक साल तक सरकार को कोई हिसाब नही देना पडता. अगर उस किसान को वो पैसे बँक द्वारा मिले होते तो लेनेवाला ओर देनेवाला दोनो को पैसे का हिसाब देना पडता था. मगर अब नगद पैसे मिलने से सरकार का मिलने वाला राजस्व डूब जाता है. किसान सभी पैसे कॅश मे मिलने पर तुरंत उस पैसे को अपने किसी पहचान के सुनार या ज्वेलर के यहा जाकर मन को तसल्ली हो इतने रुपियो के गहने या आभूषण नगद मे बनवा लेता है. वो उससे कोई भी पक्का बिल नही लेता. जिसकी वजह से वह सुनार से खरीदी किया गया सोना भी कर रहित ले आता है ओर पडे पैमाने आपको बेचा गया सोने पर tax चोरी हो जाती है या तो सुनार पुराने सोने से ही नये आभूषण बना कर देता है इससे वो किसान से जो tax के पैसे लेता है वो खुद ही रखता है ओर tax चोरी हो जाती है. बचे पैसे से शहर मे एक दो प्लॉट खरीद लेता है . बचे थोडे पैसे बँक मे जमा कर लेता है. किसान बडे पैसे से शहर मे एक दो प्लॉट खरीद लेता है . बचे हुवे थोडे पैसे बँक मे जमा कर लेता है. सुनार के पास बडी मात्रा मे नगद पैसा आता है तो वो उस पैसे को या तो प्रापर्टी डीलर से प्रापर्टी खरीदकर जमा करा देता है या तो फिर से डेवलपर को नई जगह खरीद्ने के लिये या कोई प्रोजेक्ट पुरा करणे के लिये पैसे बडे ब्याज पर दे देता है. या तो बडे कारखानदार को हुंडी के रूप मे पैसे दे देता है. यदी पैसे ज्यादा मात्रा मे जमा हो तो हवाला एजंट के जरीये विदेशो मे भेज देते है. प्लॉट डेवलपर अपने धंदे के ज्यादा तर व्यवहार कॅश से करते है. अपना पैसे जमीन खरीदने वाले किसानो को कॅश मे देते है या किसी भी बडे से कारखानदार हुंडी के रूप मे बडे ब्याज पर दे देते है. अतिरिक्त ज्यादा पैसा जमा होने पर हवाला एजंट के जरीये विदेशो मे भेज देते है.यदी ये सब व्यवहार बँक द्वारा होता तो सबको पैसे का हिसाब सरकार को देना पडता है. लेकीन बडे पैमाने पर कॅश का इस्तमाल होने से सरकार का बडा नुकसान हो रहा है.
हवाला एजंट अपना कमिशन काटकर सबसे पहले तो पैसे को देश मे ही अपने अन्य ग्राहको मे बाट देता है या तो ज्यादा होने पर फिर देश के बाहर भेज देता है. इससे tax चोरी ज्यादा होती है. बेईमानी का पैसा होणे से किसी भी प्रकार कि कोई कागजी कार्यवाही नही होती. मगर सुनने मे ओर पढने मे अक्सर ये आता है की इसमे बहोत ज्यादा इमानदारी होती है. यदी सरकार ऐसा नया कानुन बनाये के १०००० रु से बडा एक दिन मे कोई भी लेनदेन नगद रूप मे नही होगा तो इन सभी बातो पर थोडा नियंत्रण आ जायेगा. ५०० रु से ज्यादा खरीदी या बिक्री की पक्की रसीद होनी ही चाहिये जो कि G.S.T. मे प्रावधान है. सक्ती से कानून का पालन करना चाहिये. इससे देश का विकास होणा लागभग तय है